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ओरिजिनल लव पार्ट 2

"मैं अपने कानों पर नहीं, अपनी आंखों को भरोसा करती हूं, मैंने अपनी आंखों से तुझे चोरी करते देखा है, मतलब देखा है, समझे, अब चुपचाप अपना मुंह छुपा कर  यहां से  चला जा, नहीं तो अभी पुलिस को बुलाती हूं"! लड़की ने धमकी देते हुए कहा

धर्मेंद्र अपने मुंह पर उंगली रखकर, चुपचाप चला जाता है और नीचे अपनी बहन के पास आता है

"जिसकी वह चप्पल थी, वह तुझे, दिल से दुआएं दे रही होगी, अगर तु उसकी चप्पल चुरा कर ले जाता तो गालियां देती है तुझे"! राधा ने कहा

धर्मेंद्र गुस्से से अपनी बहन की ओर देखता है और कहता है -"चुरा कर ले जाते तो अच्छा होता, तेरे कारण मुझे इतनी सारी गलियां सुननी पड़ी"! धर्मेंद्र ने अपनी बहन की छोटी खींचते हुए कहा

"तूने मेरी छोटी खींची"! कहकर वह धर्मेंद्र के हाथ पर काट खाती है

"आं,,,मार डाला, आज के बाद, कभी तेरे साथ मंदिर नहीं आऊंगा"! धर्मेंद्र ने कहा

फिर दोनों भाई-बहन अपने घर आते हैं, वहां उनके माता-पिता आपस में चर्चा कर रहे हैं

"अरे सुनती हो  धर्मेंद्र की मां, वह रामपुर वाले गोपाल नाथ जी है ना"! पिता ने कहा

"हां जानती हूं, चल बसे क्या"? मां ने कहा

"अरे,, पहले पूरी बात तो सुनो"! पिता ने कहा

"हां, बताओ"? मां ने पूछा

"आज मुझे मिले थे, उनकी बिटिया गरिमा अब शादी के लायक हो गई है"! पिता ने कहा

"हां, तो हो जाने दो, हमें उससे क्या मतलब"! मां ने फिर बात काटते हुए कहा

"अरे,, पहले पूरी बात तो बोल लेने दिया करो"! पिता ने कहा

"हां, तो बताओ ना"? माँ ने फिर पूछा

"तो मैंने उनकी बेटी से अपने धर्मेंद्र की बात चलाई है, कल वह धर्मेंद्र को देखने आ रहे हैं"! पिता ने कहा

"ओह,,,अच्छा, यह बात है  लड़की कैसी है"? मां ने जिज्ञासा से पूछा

धर्मेंद्र और राधा वहीं खड़े, अपने माता-पिता की बात ध्यान से सुन रहे हैं

"बहुत सुंदर और संस्कारी लड़की है, हफ्ते में एक दिन मंदिर जाती है, रोटी बनाना नहीं आता, पर सब्जी बहुत अच्छी बनाती है, पढ़ी-लिखी होनहार है और कलेक्टर की पढ़ाई कर रही है"! पिता ने बताया

"इस घर के सभी लोग, दूसरों की बहन, बेटियों की तारीफ करते हैं  मैं रोज मंदिर जाती हूं, खाना बनाती हूं, पढ़ी लिखी हूं पर कोई मेरी तारीफ नहीं करता है"! राधा ने गुस्से में कहा

"तुझ में तारीफ के काबिल, कोई बात होगी तो करेंगे, मम्मी आज इसने मुझ पर हाथ उठाया और मेरे हाथ पर हशकाट खाई डायन जैसी"! धर्मेंद्र ने राधा की शिकायत की

"बड़े, छोटे का लिहाज नहीं है तुझ में, अपने बड़े भाई पर हाथ उठाती है"! मां ने राधा को डांटते हुए कहा

"ऐसे सिगरेट फुंकू और चप्पल चोर, भाई के साथ ऐसा ही करना चाहिए"! राधा ने कहा

यह सुनते ही धर्मेंद्र भाग कर घर के बाहर आता है और सोचता है -"गरिमा,,,बहुत सुंदर नाम है, मेरे होने वाली पत्नी रामपुर में रहती है, गोपाल में नाथ जी के घर, मतलब मेरे ससुर के घर, इस काम में मेरा दोस्त, कालू ही मेरी मदद कर सकता है"!

यह सोचकर धर्मेंद्र अपने दोस्त कालू के पास आता है, इस वक्त कालू, कुछ काम कर रहा है

"और कालू क्या कर रहा है"? धर्मेंद्र ने पूछा

"दिख नहीं रहा, काम कर रहा हूं, कोई मतलब की बात होगी, तभी आज उल्टा सूरज निकला है"! कालू ने उलाहना देते हुए कहा

'फोकट की बात मत कर, नहीं तो वापस चला जाऊंगा, तू, एक ही तो मेरा दोस्त है, पूरे गांव में"! धर्मेंद्र ने कहा

"ऐसे कहने से कोई दोस्त नहीं हो जाता, मैं परसों तेरे घर आया था कि चल रामपुर से खाद की बोरी लेकर आते हैं, तो तूने क्या कहा था, अपना काम खुद करो"! कालू ने उलाहना देते हुए कहा

"देख,, गड़े मुर्दे मत उखाड़, चल रामपुर चलते हैं"! धर्मेंद्र ने कहा

"अब फालतू में जाकर क्या करेंगे"? कालू ने पूछा

"तु रामपुर वाले, गोपाल नाथ जी को जानता है"? धर्मेंद्र ने पूछा

"हां जानता हूं, मेरे कमल काका के पड़ोसी है"! कालू ने बताया "और उनकी लड़की, गरिमा को पहचानता है"? धर्मेंद्र ने फिर पूछा

"बहुत अच्छे तरीके से जानता हूं"! कालू ने गाल पर हाथ रखते हुए कहां

"कैसी दिखती है"?धर्मेंद्र ने फिर पूछा

"देखने में तो दीपिका पादुकोण जैसी है, पर"! कालू ने कहा

"पर, फर, सब छोड़ और मेरी बात सुन, उससे मेरी सगाई होने वाली है, कल उसके पापा मुझे देखने आ रहे हैं"! धर्मेंद्र ने बताया

"वह तुझे देखने नहीं आ रहे हैं, तेरी अर्थी का सामान, अपने साथ ला रहे हैं, अरे,,,बहुत तेज़ तर्राट ओर खतरनाक लड़की है, अपनी नाक पर आदमी जात की मक्खी तक नहीं बैठने देती है, तुझे क्या खाक, गोद में बिठाएगी, बेच खायेगी तुझे, उसके सपने आसमान से भी ऊंचे हैं और मैंने यहां तक सुना है कि जब तक वह कलेक्टर नहीं बन जाती, तब तक शादी सगाई तो बहुत दूर, किसी लड़के की तरफ देखेगी भी नहीं"!

अपने दोस्त की बात सुनकर, उदास, निराश धर्मेंद्र वहां से मुंह लटका कर चलता है और मन में सोचता है -"कहने वाले ने बिल्कुल सही कहा है, कि  शीशे और दिल में कोई फर्क नहीं होता है, क्योंकि जब भी यह टूटते हैं तो बहुत सारे टुकड़े हो जाते हैं"!

"दिल के अरमां, आंसुओं में बह गए"! "हम वफा करके, भी तन्हा रह गए"! "दिल के अरमां, आंसुओं में बह गए"! "हम वफा करके, भी तन्हा रह गए"!

धर्मेन्द्र निराश होकर अपने घर आता है, उसके सारे अरमान पानी में बह चुके हैं"!

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